मेरे तथा मेरे परिवार कि ओर से समुह के सभी सदस्यो को श्रावणी उपाकर्म जनेऊ पूर्णिमा तथा रक्षाबंधन कि हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए

रिश्तों को मज़बूत बनाती, यह डोर बड़ी निराली है, जिस भी भाई के हाथ पर बंधती, वह हो जाता भाग्यशाली है। डोर यानी रक्षाबंधन का रिश्ता। भाई और बहन का पवित्र रिश्ता है जो कि प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र की दुआ करती है और भाई भी अपनी बहन की सदा रक्षा करने का वचन देता है।
यह रक्षाबंधन का त्यौहार शुरु कब से हुआ? इस विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। इतिहास बताता है कि चित्तौड़ की रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजकर अपना भाई बनाया और इसी राखी की इज्जत के कारण हुमायूं ने गुजरात के राजा से युद्ध कर, रानी कर्मवती की रक्षा की। इसके अलावा हमारी धार्मिक पुस्तकों में भी रक्षाबंधन मनाने की कुछ मान्यताओं का जिक्र है।
महाभारत में इस त्यौहार की मान्यता का वर्णन है। द्रौपदी ने एक बार त्रेतायुग में भगवान श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग जाने पर, अपनी साड़ी से टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांधा था। उसी चीर बांधने के कारण श्री कृष्ण ने चीरहरण के समय द्रौपदी की रक्षा की थी।
विष्णु पुराण की मान्यता पुराणों में इस त्यौहार का जिक्र उस समय हुआ है जब देवासुर संग्राम हुआ था। विष्णु पुराण में इसका वर्णन अध्याय नवम में किया गया है। पुराण में लिखा है कि देवाताओं और असुरों का संग्राम 12 वर्षों तक चला था। इस संग्राम में देवताओं की हार हुई और असुरों की जीत। असुरों ने देवताओं के राजा इंद्र को हराकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। देवता परास्त होकर जब ब्रह्मा जी के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि, “हे देवता गण, आप दुष्टों का संहार करने वाले भगवान विष्णु के पास जाइये। वे ही संसार की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण हैं। वहां जाने से आपका कल्याण होगा।” तब देवता गण के साथ लोक पितामह श्री ब्रह्मा जी स्वयं क्षीर सागर के तट पर गए और वहां पहुंचकर उन्होंने भगवान विष्णु की स्तुति की। स्तुति के पश्चात भगवान विष्णु प्रकट हुए और देवताओं को मदद का आश्वासन दिया। इसके बाद देवताओं ने अपने गुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया और रक्षा विधान के लिए कहा। तब सावन की पूर्णिमा को प्रात: काल रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
येन बद्धोबली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल ।।
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूं। हे रक्षे! तुम अडिग रहना (तुम अपने संकल्प से कभी भी विचलित न होना।)”
इस मंत्र से गुरु बृहस्पति ने सावन की पूर्णिमा के दिन रक्षा विधान किया। इंद्राणी ने इंद्र के दायें हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया। इसी सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।
आज के आधुनिक एवं तकनीकी युग और सूचना सम्प्रेषण के युग का प्रभाव राखी जैसे त्यौहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। रक्षाबंधन के अवसर पर बहनें कुरियर के ज़रिये, अपने भाइयों तक राखी पहुंचाती हैं।